Gazal..l.Hindi .Gaza Hindi

ग़ज़ल अंगड़ाई भी वो लेने न पाए उठा के हाथ अपनी धुन में रहता हूँ अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जाएँगे अशआर मिरे यूँ तो ज़माने के लिए हैं असर उस को ज़रा नहीं होता आँखों से हया टपके है अंदाज़ तो देखो आए कुछ अब्र कुछ शराब आए आप की याद आती रही रात भर आप जिन के क़रीब होते हैं आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक आहट सी कोई आए तो लगता है कि तुम हो इंशा जी उठो अब कूच करो इस शहर में जी को लगाना क्या उज़्र आने में भी है और बुलाते भी नहीं उल्टी हो गईं सब तदबीरें कुछ न दवा ने काम किया ऐ जज़्बा-ए-दिल गर मैं चाहूँ हर चीज़ मुक़ाबिल आ जाए ऐ मोहब्बत तिरे अंजाम पे रोना आया कब ठहरेगा दर्द ऐ दिल कब रात बसर होगी कब मेरा नशेमन अहल-ए-चमन गुलशन में गवारा करते हैं कभी ऐ हक़ीक़त-ए-मुंतज़र नज़र आ लिबास-ए-मजाज़ में कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तिरा किसी और ग़म में इतनी ख़लिश-ए-निहाँ नहीं है कुछ तो हवा भी सर्द थी कुछ था तिरा ख़याल भी कू-ब-कू फैल गई बात शनासाई की कोई उम्मीद बर नहीं आती कौन आएगा यहाँ कोई न आया होगा ख़बर-ए-तहय्युर-ए-इश्क़ सुन न जुनूँ रहा न परी रही ख़याल-ओ-ख़्वाब हुई हैं मोहब्बतें कैसी ग़ज़ब किया तिरे वादे पर एतिबार किया ग़म-ए-आशिक़ी से कह दो रह-ए-आम तक न पहुँचे गर्मी-ए-हसरत-ए-नाकाम से जल जाते हैं गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौ-बहार चले गेसू-ए-ताबदार को और भी ताबदार कर गो ज़रा सी बात पर बरसों के याराने गए चलने का हौसला नहीं रुकना मुहाल कर दिया चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है जब से तू ने मुझे दीवाना बना रक्खा है जिसे इश्क़ का तीर कारी लगे जुस्तुजू जिस की थी उस को तो न पाया हम ने ज़े-हाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल दुराय नैनाँ बनाए बतियाँ ढूँडोगे अगर मुल्कों मुल्कों मिलने के नहीं नायाब हैं हम तंग आ चुके हैं कशमकश-ए-ज़िंदगी से हम तिरे आने का धोका सा रहा है तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ तुम आए हो न शब-ए-इंतिज़ार गुज़री है तुम्हारे ख़त में नया इक सलाम किस का था दामन में आँसुओं का ज़ख़ीरा न कर अभी दिल धड़कने का सबब याद आया दिल में इक लहर सी उठी है अभी दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यूँ दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है दीवारों से मिल कर रोना अच्छा लगता है दुनिया के सितम याद न अपनी ही वफ़ा याद दूर से आए थे साक़ी सुन के मय-ख़ाने को हम देख तो दिल कि जाँ से उठता है देर लगी आने में तुम को शुक्र है फिर भी आए तो दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार के न किसी की आँख का नूर हूँ न किसी के दिल का क़रार हूँ नगरी नगरी फिरा मुसाफ़िर घर का रस्ता भूल गया नया इक रब्त पैदा क्यूँ करें हम पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी मरने की दुआएँ क्यूँ माँगूँ जीने की तमन्ना कौन करे मिल ही जाएगा कभी दिल को यक़ीं रहता है मेरे हम-नफ़स मेरे हम-नवा मुझे दोस्त बन के दग़ा न दे मैं ख़याल हूँ किसी और का मुझे सोचता कोई और है मोहब्बत करने वाले कम न होंगे यारो मुझे मुआफ़ रखो मैं नशे में हूँ यूँही बे-सबब न फिरा करो कोई शाम घर में रहा करो ये आरज़ू थी तुझे गुल के रू-ब-रू करते ये क्या जगह है दोस्तो ये कौन सा दयार है ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता रंग पैराहन का ख़ुशबू ज़ुल्फ़ लहराने का नाम रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ रहिए अब ऐसी जगह चल कर जहाँ कोई न हो रौशन जमाल-ए-यार से है अंजुमन तमाम लगता नहीं है दिल मिरा उजड़े दयार में लाई हयात आए क़ज़ा ले चली चले ले चला जान मिरी रूठ के जाना तेरा वक़्त-ए-पीरी शबाब की बातें वो जो हम में तुम में क़रार था तुम्हें याद हो कि न याद हो वो तो ख़ुश-बू है हवाओं में बिखर जाएगा शाम-ए-फ़िराक़ अब न पूछ आई और आ के टल गई सर में सौदा भी नहीं दिल में तमन्ना भी नहीं सरकती जाए है रुख़ से नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता सितारों से आगे जहाँ और भी हैं सीने में जलन आँखों में तूफ़ान सा क्यूँ है सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं सोज़-ए-ग़म दे के मुझे उस ने ये इरशाद किया हंगामा है क्यूँ बरपा थोड़ी सी जो पी ली है हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले हम को जुनूँ क्या सिखलाते हो हम थे परेशाँ तुम से ज़ियादा हम ही में थी न कोई बात याद न तुम को आ सके हम हैं मता-ए-कूचा-ओ-बाज़ार की तरह हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है हस्ती अपनी हबाब की सी है है जुस्तुजू कि ख़ूब से है ख़ूब-तर कहाँ